About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Thursday, October 05, 2017

दूसरी तरह के घर

सिर्फ ऊँची दीवारों और 
बंद दरवाजों से ही घर नहीं बनते,
आसरा देने वाले वो टूटे पाईप और 
कचरे के ढेर भी किसी घर से कम नहीं होते |

छत और दीवारें नहीं होती, 
दरवाजे खिड़कियाँ भी नहीं होती,
लेकिन बिखरे कचरे के बीच, 
वो किसी घर से कम नहीं होते |

जो बूढों को ओढा दे कंबल फटे से,
कभी दे बच्चों को खिलौने बेकार से,
दुसरो के घरों से फेंकी चीज़ों से बने
वो किसी घर से कम नहीं होते |

कभी रुखा सुखा परोसे, 
तो कभी खाली डिब्बों में बची मिठाई,
बिना रसोई के भी पेट भर दे,
वो किसी घर से कम नहीं होते |

अनाथों को खेलने दे, 
लावारिसों को सोने दे, 
इतने विशाल हृदय वाले, 
वो किसी घर से कम नहीं होते |

रिश्तों के पर्दे नहीं होते,
जरूरतों के बंधन नहीं होते,
पुश्तों के बटवारे नहीं होते,
वो किसी घर से कम नहीं होते |




Tuesday, October 25, 2016

ये दिल हैं मुश्किल


ये दिल 
हैं मुश्किल 
तुझे समझाना
मिलेगी
जहाँ ठोकर
फिर वहां क्यों जाना 

जो दीखता हैं सच सा
वो सच तो नहीं हैं
जो लगता हैं अपना सा
वो अपना तो नहीं हैं 
फिर कोई नया झूट
आया हैं सवंर के
इससे तू बच के रहना 

कहने को हैं वादे 
बस कह के ही रह जाते 
और तू हैं कि सजा ले 
दुनिया अपनी उनके भरोसे 
कैसे समझाऊ तुझे 
सिर्फ बातें हैं ये सारी
इनके फेरो में तू न आना 

ये दिल 
हैं मुश्किल 
तुझे समझाना
टुटा जो 
फिर से तू
मुझे ही हैं तुझे मनाना 

Sunday, May 03, 2015

मैं लिखता नहीं हूँ

सोचने वाला मन 
अब उलझनों में उलझा रहता है 
सुनने वाला मन
शोर से दूर शांत कोना खोजता हैं
लिखने वाला मन 
रोजमर्रा की जिंदगी में खोया रहता हैं
कभी ख्वाब लिखे थे
अब सच को जीते हैं 
न जाने क्या हुआ हैं 
मैं लिखता नहीं हूँ 
और लिखने को कुछ सूझता नहीं हैं 

 
कुछ यादें हैं
अब वो साफ़ नहीं धुधली सी हैं 
कुछ बाते हैं
अब वो भी बेमानी लगती हैं 
सब कुछ बिखरा हैं 
बेतरतीब रखी जैसे किताबे हैं 
न जाने क्या हुआ हैं 
मैं लिखता नहीं हूँ 
और लिखने को कुछ सूझता नहीं हैं 

 
कलम रुकी हैं
या फिर मेरा कागज उड़ा हैं 
शब्द रूठे हैं 
या फिर कोई अहसास गुम हुआ हैं 
न जाने क्या हुआ हैं
मैं लिखता नहीं हूँ 
और लिखने को कुछ सूझता नहीं हैं 

Wednesday, December 18, 2013

छलांग

एक छलांग क्या लगायी
तुम्हे लगा हदे हैं बतायी 
कैद कर दिया तुमने 
हमे भी अपनी ज़मी में 

उड़ाने हैं अभी बाकी 
जान तो अभी आयी
साँस तो लेने तो हमे 
पंख फैलाने तो दो हमे 
फिर बताएं क्या हैं
हमारी ख्वाहिशों में 

तड़पते हैं तो जिंदा हैं 
तरसते हैं तो जिंदा हैं 
इस तरह हैं जिंदगी के करीब 
सुकून तो हैं मुर्दों का नसीब
एक ज़रा पूरा हों जाने दो 
फिर बताएं क्या हैं 
हमारे खवाबों में

Saturday, November 23, 2013

शायर के अफसाने


किताबो में नहीं छपते
मुशायरो में सुनाये नहीं जाते  
किसी शेर के शक्ल में सामने भी नहीं आते
शायर के अफसाने तो अक्सर अधूरे ही रह जाते

जब भी कहने को सोचते 
किसी और की ही बात कर जाते 
कुछ तो बाक़ी रह जाता हैं जो भी कहते
शायर के अफसाने तो अक्सर अधूरे ही रह जाते

नज्म में कोई नाम छुपा दे 
फिर उसे चाहने वालो को सुना दे 
उसने सुना होगा कि नहीं बस यही सोचते
शायर के अफसाने तो अक्सर अधूरे ही रह जाते

Saturday, October 05, 2013

दूर चले

I wrote following as lyrics for song with my supposed be band(Oct 2010)This song still in production :)
 
 
हम दोनों खो जाए 
अंजानी राहों में 
दूर चले 
खोजे हम खुद को 
भूल जाये सारी बातें 
दूर चले 

राहों को हम भूल जाये 
खोजे नयी ये दिशाएं 
साथ चले
सूरज के साथ
दिन युहीं डूब जाएँ 
दुबे दिन की 
यादे कहीं 
छोड़ के
दूर चले 

ख्वाब थे जो छुपाएँ 
लम्हे उनसे हम सजाएँ
यादो की रात
सजती रहें 
रोशनी में कहीं 
लुटा के ख्वाब 
सारे युहीं 
दुनिया से 
दूर चले 

Friday, October 04, 2013

शिव की खोज



मन के मंथन से जो उपजा 
बंजर कर दे सारी वसुधा 
ऐसा पश्चाताप का हलालाल 
अंजलि में लिए फिरता हूँ 
कर ले जो जनहित में विषपान 
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ 

विचारों के धरातल को तोड़ दे 
मेरी सोच की सीमाओ को लाँघ दे 
कर दे मन के टुकड़े टुकड़े 
हर एक टुकड़ा नवजीवन हों 
कर दे विनाश का तांडव 
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ 

हे ब्रह्म तुम सृजन को तैयार रहों 
मैं आता हूँ अपने मन को लेके 
मृत्यु का आशीर्वाद दे कर 
जीवन की ओर जो मन को भेजे 
पूर्ण करें जो जीवन चक्र को
ऐसे शिव को खोजता फिरता हूँ

Tuesday, July 16, 2013

ओ मुसाफिर

ओ मुसाफिर

मैं तेरी मंजिल 
तेरी नज़रों से ओझिल 
मेरे बिन तू हैं अधूरा
क्यूँ फिरे बनके फकीरा 
अपनी आखों से पूछ मेरा पता 
जिन्होंने संभाल के रखा 
तेरे वजूद का हिस्सा 
जो तू कहीं भुला बिसरा 
तू कहीं थक न जाना 
उम्मीद को न खोना  
तेरी आने की चाह में 
सपने बिछाए तेरे राहों में 
मुझ तक पहुँचने के
इशारे हैं मैंने छिपाए
बस हर कदम ये याद रखना
जो पूरा किया वो ही फासला
जो आगे हैं वो मेरी बंदगी
तुझसे ही पूरी हैं मेरी जिंदगी 

Thursday, February 21, 2013

गली

गली वो जो मेरे बचपन से शुरू होती थीं
संग मेरे दोस्तों के दौड़ा करती थीं
सूखते आवलों और पापड़ों से
खुद को संग हमारे बचती बचाती
कभी चोर पुलिस तो लुक्का छिप्पी
शोर मचाने पर बूढी दादी की डाट खाती
गली वो सोचता हूँ 
अब न जाने कैसी होगी
क्या अब भी बारिश में
वो किसी छज्जे में छुपती होगी
 
गली वों जिसने जगह दी थी
आवारों कुत्तों को
हमने भी नाम दिए थे उन
मासूम पिल्लो को
सबके मना करने पर भी
वो उनके साथ खेलती थीं
कभी किसी की गाय को यूँ ही
अपने पास बिठा लेती थी
सोचता हूँ अब न जाने किसका राज़ होगा
कालू कुत्ता तो अब बुढा होगा
 
गली वो जो फेरी वालों की
आवाजों से गूंजा करती
गर्मियों की जलती धुप में
बच्चे पकड़ने वालो से डरी सहमी रहती
गली वों जिसमे दरवाज़े
अंदर की तरफ खुलते थे
हर खटखटाहट चाय पिलाने
का न्योता देते थे
गली वो जिसमे सुबह
सब पानी के लिए लड़ते
शाम को साथ बैठ कर 
सब्जियां थे काटते
और रात को वो गली
पहरा देती थी चौकीदार के साथ
 
मेरे पुराने शहर की वो गली
जिसे आज शहर ने भूला दिया
सबने अपना हिस्सा लेकर
उसको अपनी जमीं में मिला दिया
नए शहर की चका चौंध में
घर सबने बड़ा बना लिया
लेकिन किसी ने भी लोगो को
अपनाना नहीं सिखा
हड़प ली उसकी सारी चीज़े  
उसके दिल सा धड़कना नहीं सिखा   
 

Friday, February 08, 2013

सर्द ये मौसम हैं

ठंडी हवा हौले से छूती हैं 
ओंस की बुँदे खिलखिलाती हैं 
खेले कोहरा आँख मिचौली 
सूरज की किरणे भी बादलों में खो जाती हैं 
जो पूछा सुबह की धुप से 
क्यूँ हों तुम अलसायी सी 
बोली कैसे उड़ा दू ओंस की बुँदे 
वो मेरी भी मन भायी सी
देखो ये कैसा आलम है 
सर्द ये मौसम है 
 
उँगलियों के पोरों पे ठिठुरन 
गालों में छायी लालिमा 
हथेलियों को रगड रगड कर 
मुहँ से फेंके सब धुआँ
खुद में सिमट कर 
छोटे होने की होड़ लगी हैं 
खेल ये खेल रहे सब  
क्या बुढा और क्या बच्चा
देखो ये कैसा आलम है 
सर्द ये मौसम है 

Monday, January 28, 2013

कभी कभी -2

यु तो दिन निकल जाता हैं
रोज़ के कामो में
खुश रहता हैं दिल अब
जिंदगी के नए आयामों में
कभी गुज़रे हुए मौसम की
कोई लम्हा याद दिला जाता हैं
यहाँ तो उस मौसम को गुज़रे सालो हुएं
वहाँ कौनसा मौसम होगा
कभी कभी मेरी दिल में ख्याल आता हैं 
 
क्या अब भी पढते हों
मेरे खत अकेले में
या भीगी हवा में उड़ा चुके हों
उनके पुर्जे
क्या संभाल के रखा होगा
मेरी निशानी को
या फिर जला आये होंगे
किसी वीराने में
मैं कुछ भी संग नहीं लायी 
यादों का एक पुलिंदा 
चोरी चुपके न जाने कैसे 
मेरे साथ चला आया  
अपनी यादों के साथ  
तुमने क्या किया होगा
कभी कभी मेरी दिल में ख्याल आता हैं 
 
अब तक तो मुझको भुला दिया होगा
या फिर बेवफा का ख़िताब दे दिया होगा
ये भी अच्छा हैं कहोगे बेवफा तो खुश रहोगे
जान के अब मेरी मज़बूरी भी क्या करोगे
या फिर अभी तक उलझे होंगे कुछ सवालों में
आखिर क्या किया होगा
कभी कभी मेरी दिल में ख्याल आता हैं 
 
 
 
 

Monday, January 21, 2013

कभी कभी


मुझसे तेरा दूर होना
तेरी शरारत हैं 
मुझसे बात ना करना
तेरी शरारत हैं 
मुझे किसी मोड़ पे रोके करना
तेरी शरारत हैं    
मैं जानता हूँ कि ये भुलावा हैं
मगर यूँ ही   
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं 

ख्वाबों की तस्वीर 
दिल से निकल कर 
दीवारों पर लग भी सकती थी 
ख्यालो का फलसफ़ा 
ज़ेहन से निकल कर 
ज़ुबा पे हों भी सकता था 
मैं जानता हूँ कि ये हों न सका
मगर यूँ ही 
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं 

शायद कोई खत हों कहीं
जो मुझ तक पहुंचा नहीं 
या फिर कोई इशारों की बात 
जिसको मैं समझा नहीं 
शायद आज भी तुझे उम्मीदे हैं 
कि मिल जाये हम फिर से कहीं 
मैं जानता हूँ कि ऐसा कुछ भी नहीं 
मगर यूँ ही 
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं 


अब शिकवा नहीं शिकायत नहीं 
किसी पुराने सवाल का जवाब भी नहीं 
तेरी ख्वाहिशों से गुज़र कर 
अब दिल को कोई गम भी नहीं
अंधेरो में सिमटी ये रात 
इसको अब सवेरे का इंतेज़ार भी नहीं 
मैं जानता हूँ कि अब तू गैर हैं  
मगर यूँ ही 
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं 

Saturday, December 01, 2012

मेरे घर आना तुम

रस्ते की धुल
वो पलाश के फूल
कच्ची पक्की बेर
तो कभी आम या अमरुद 
रंगीन बर्फ से गिरता वो मीठा पानी
या किसी मिठाई की रसीलेदार कहानी 
खेतों में मिला किसी पंक्षी का पंख
नदी किनारे मिला छोटा खूबसूरत शंख  
किसी के धड़ाम से गिरने की लंबी दास्ता
कभी कहीं पहुँचाने का छोटा रास्ता 
कभी वो लटका सा मुँह तुम्हारा   
कभी मजाक में कभी दुखी बेचारा 
तब घर आते हर वो चीज़ जो लाते थे
संग उनके अपनी चुप्पी भी
फिर लेते आना तुम 
समय न बिता हों जैसे 
सब कुछ वैसा ही हों 
ऐसे फिर मेरे घर आना तुम 

Friday, November 30, 2012

शादी की बात - २


सलमान शाहरुख जैसा कोई नहीं दीखता 
एक भी लड़का मेरे मन को नहीं भाता 
फिर भी माता पिता ने है रट लगाईं
बेटा तेरी विदाई की हैं बेला आयी  
मैंने भी पहले नारी जीवन की sympathy गिनाई  
लेकिन भविष्य और सामाज की बात पर उन्होंने हामी भरवाई 

पिता जी खो गए ये बताने में 
कैसे जुगत लगाईं थी माँ को देखने में 
तब घर के बड़े ही देख आते थे 
लड़के तो सीधे मंडप में ही मिल पाते थे 
माता जी भी कुछ कम घबराई न थी
सहमी सहमी सारे मेहमानों के सामने आयी थी 
लेकिन मैंने कह दिया मेरी पसंद होगी जरुरी 
जब तक मिलेगा न मन भाया रह जाउंगी कुवांरी 

घर वाले फिर करने लगे तरह तरह की बाते 
कभी लड़के तो कभी उसके घर वालो के गुण हैं गाते 
पासपोर्ट, क्लोज अप या फेसबुक से फोटो दिखलाते 
हर फोटो में अपनी बेटी का न जाने कैसे भविष्य देख आते 

मैं तो खोज रही एक सपनो का राजकुमार 
सलमान शाहरुख न सही हों अर्जुन रामपाल 
क्यूँ ये लड़के हैं ये ऐसे बिगड़े बिगड़े 
क्या फिल्म वाले सब झूट ही दिखाते 
अभी भी तलाश जारी हैं 
क्यूंकि शादी की बात का पार्ट थ्री बाकी हैं 

शादी की बात

Saturday, October 20, 2012

धुप

आये हैं हमारे आंगन
रुई से चमकते बादल  
जैसे धो के अभी सुखाया हैं 
गगन भी जैसे अभी ही नहाया हैं  
अच्छी खुशबू आती मिट्टी से 
पानी की बुँदे लटकी पत्ती से  
देखो जैसे सूरज टुट गया बूंदों में 
और ये बुँदे ही फैलाती रौशनी जग में 
छोटी छोटी नदियाँ बहती 
आंगन में चांदी सी चमकती 
बारिश के बाद बतलाओ 
धुप होती हैं क्यूँ इतनी उजली 
अम्मा बाहर तो निकलो 
देखो आयी धुप बारिश में धुली  

Saturday, October 13, 2012

क्या दिल्ली क्या लाहौर

किसी की जिद ने
किसी  की साजिश ने
दीवार खड़ी कर दी
सुबह तो थे भाई भाई    
ये कैसी आयी काली परछाई
कि शाम ने सरहदे तय कर दी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
सारी गलियां तो अपनी थी
 
अपने बटवारे पर न काबू
अपनों का ही बहाया लहू
आखिर ऐसी भी क्या दुश्मनी
गोद होती जिसमे सुनी   
सपने होते जिसमे कुर्बान 
ऐसी भी क्या जंग लड़नी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
रोती आखें तो अपनी थी
 
लम्बा अरसा बीत गया
कुछ तेरा कुछ मेरा खो गया
फिर भी नफरत की रात न बीती
आ दोनों मिल कर कोशिश करे
कल की सुबह हो उजयारी
फिर से न दोहराएँ वहीँ कहानी
हम और तुम दोनों क्यूँ भूले
क्या दिल्ली और क्या लाहौर
हँसता बचपन तो अपना हैं   

Saturday, October 06, 2012

बड़ा हो गया हूँ

जगने पर भी चादर ओड़ कर
सोचता हूँ माँ आएगी जगाने
भूल जाता हूँ हर सुबह
कि कम्बखत बड़ा हो गया हूँ मैं

रात को करवटे बदलता रहता हूँ
सोचता हूँ माँ आएगी सुलाने 
भूल जाता हूँ हर रात 
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

अनसुलझे सवालो को बटोर कर
सोचता हूँ पापा से पूछूँगा
भूल जाता हूँ हर बार  
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

दुनिया से लड़ कर आ जाता हूँ
सोचता हूँ भैय्या निपट लेगा सबसे
भूल जाता हूँ हर बार  
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

छोटे होने पर थी नाराज़गी
सोचता था जल्दी बड़ा हो जाऊ 
लेकिन इतनी भी क्या थी जल्दी
कि कमबख्त बड़ा हो गया हूँ मैं

Saturday, September 08, 2012

भारत के वीर

भाषणों से उद्देलित हो कर 
तुच्छ चिंगारी में ज्वलित हो कर 
भीड़ की आंधी बन जाते हो 
भारत के निर्माता तुम 
कैसे अन्यायी लोगो के हाथों  
आखिर प्यादे बन जाते हो 
पाखंडी चेहरों को देखना सीखो 
छुपे उद्देश्य को जानना सीखो 
छोड़ के अपनी चिर निद्रा  
भारत के वीर अब तो जागो 

भारत का स्वर्णिम इतिहास 
दबा रहे कैसे किताबो में 
जो सोचा होता यहीं आज़ाद ने 
क्रांति के अध्याय कैसे जुड़ पाते 
न रहो पढ़ते सही गलत के चिट्ठे 
उचित अवसर की राह न देखो  
समय सदा उचित ही रहता 
देश हित में कुछ नया गड़ने को 
अपना स्वर्णिम भविष्य मांगो 
भारत के वीर अब तो जागो 

जन्म लिया स्वतंत्र धरती पर 
फ़िर भी दुराचार की है पराधीनता 
बिस्मिल जैसा नहीं तुम्हे संताप 
फ़िर भी हर युग की होती अपनी चिंता 
जो ना कर सकते त्याग भगत सा 
पुष्प कुमार भी ना बन बैठो 
जितना साहस हो उतना लेकर 
बेहतर भारत की ओर कुच करो  
देश हित में अब ललकार करो 
भारत के वीर अब तो जागो 

पूछ सकते हो सवाल बहुत 
बूढी होती पीढ़ियों को 
जान सको तो जानो 
उनकी की हुई गलतियों को 
आने वाली पीढियां पूछेगी कितने सवाल 
आज ही सारे उनके जवाब लिख दो   
फ़िर से वहीँ काली रात ना आये 
हृदय जलाकर कर सूर्य बनो 
सूर्य न बन सकते तो दिए बन जाओ  
भारत के वीर अब तो जागो 

Friday, September 07, 2012

तुम्हे

तुम ख्वाब सी खुबसूरत कैसे 
कैसे हो मेरे ख्यालो जैसी 
क्या किसी ने चुरा के मेरे राज़ 
तुम्हे वैसे ही बनाया हैं 

तुम भीड़ में खो भी नहीं जाती  
मिल जाती हो इतफाक से हर कहीं 
क्या किसी ने चुरा के मेरे रास्ते
तुम्हे उन्ही रास्तो पर चलाया हैं   

तुम्हारी मुस्कराहट दिल को छूती 
आखों को तुम्हारी हंसी जगमगा देती
क्या किसी ने चुरा के मेरे हसीं पल 
तुम्हे ये सब बताया हैं  

जिंदगी कट रही थी यूँ ही 
की फरिश्तो से गुज़ारिश कितनी 
क्या किसी गुज़ारिश ने पुरी हो कर 
तुम्हे धरती पे बुलाया हैं 

Wednesday, September 05, 2012

अंतिम सवांद

प्यार ऐसा भी क्या, जो फिर दिल पछताए
दे न पाउँगा कुछ भी, झूटे वादों के सिवाए
ख्वाब न सजाओ जो, तुमको कल रुलाये
जो कल आंसू आयेंगे तो पोंछ भी न पायोगी
 
अपनों के भेष में छुपे, सब अदाकार हैं पराये
आओ न मेरी दुनिया में, वीराने के हैं साए
तुम्हारे अहसास सारे, हालात से कुर्बान न हो जाये
जो कल अहसास न होंगे, तो कुछ कह भी न पायोगी
 
क्यूँ मेरे साथ कोई, पत्थर पर नंगे पाँव चले  
ज़िन्दगी की धुप में, क्यूँ कोई और संग तपे
कमसिन उम्र ये क्यूँ, लू के थपेड़ो में जले
जो कल उम्र झुलस गयी, तो क्या न पछ्तायोगी
 
अभी इश्क के मौसम, गायेंगे और भी तराने
तेरे हुस्न के होंगे, और भी बहुत से दीवाने
फिर दिल में कोई, आएगा अपना घर बसाने
जो कल दिल ही टुटा, तो फिर किसे बसा पायोगी