About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Tuesday, March 01, 2011

रेत का फूल

यहाँ रेत का समुन्दर है
लहरों में हवा का शोर है
सूरज उगलता है आग
कोई ना रहा अब मेरे साथ

कभी थी कलियों यहाँ खेलती
फूलो से सजी थी ये नगरी
आती गयी सबकी बारी
अब यहाँ मैं अकेला पहरी
खुशबु का लगता था मेला
रंगों का था जादू फैला

था रंगों पे गुमान सबको
मौसम की लगी नज़र हमको
ऐसा मौत का मंजर देखने
रेत में अब हु मैं अकेला
सिख लिया रेत में जीना
पानी की हर बूँद को पीना
हर साथी को सूखते देखा
रंगों को दफ़न होते देखा

लड़ता रहा मौसमो के साथ
हर बूँद कुछ और देर बचाता रहा
जिस्म में बची है अब थोड़ी सी जान
खड़ा हु लेके बाकियों का अरमान
बारिश के आने की है आस
फैला के जाऊंगा बीज जो है मेरे पास

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