About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Saturday, March 12, 2011

सड़के

मेरे गाँव की दो सड़के
कहने को तो दोनों हमारी
लेकिन एक कच्ची एक पक्की
पहले दोनों कच्ची थी
दुःख दर्द की साथी थी
एक के गड्ढो पर दूसरी भी रोती थी
दोनों अभागी सी जीती थी
कच्ची से हुआ ये व्यव्हार सौतेला
क्युकि पक्की से दौरा मंत्री का था निकला

एक दिन किसी को गाँव के याद आयी
उसने मंत्री से आने की गुहार लगायी
था उसने सोचा गाँव के हालत दिखा कर
उनको सवाल पूछेगा विकास के नाम पर
मंत्री के आने से पहले
चमचो ने सड़क बनवाई
पैसे लिए दोनों के लेकिन
किस्मत एक ही की चमकाई
कर दिया कुछ इंतज़ाम ऐसा
गाँव लगने लगा शहर जैसा
जिस रास्ते आया था
उसी रास्ते लौटा काफीला
मंत्री को भा गया विकास ऐसा
जिसने शिकायत की थी उसे फटकारा
बोले इस गाँव को मॉडल बनायेंगे
और इसी तरह देश को प्रगति की राह पर चलाएंगे

अब पक्की को हो गया
गुमान नए रूप पर अपने
किसी अमीर महिला के तरह
वो देती कच्ची को ताने
भाग कर्म के देनी लगी प्रवचन
तो कभी कच्ची के चरित्र पर लांछन
कच्ची से और ना सुना गया
उसने भी अपना आप खो दिया
इतना ना इतराओ पक्की से बोली
दुःख दर्द के साथी से ठीक नहीं ऐसी ठिठोली
ये जो रूप में निखार आया है
बस ऊपर से पावडर ही लगाया है
अंदर से तुम भी कमजोर मेरी जितनी
धो कर जायेगा तुम्हे बारिश का पहला पानी
फ़िर अपने रूप के साथ ना जी पायोगी
समझती हु तुम्हे फ़िर कभी ना हंस पाओगी

वो शाम

राह तो तुमने देर तक देखी होगी
मुझसे लड़ने की जरुर ठानी होगी
लेकिन मेरे ना आ पाने के फ़िर भी
कुछ बहाने कुछ वजहे सोची होगी
खत्म ना हुआ होगा तेरा इंतेज़ार
वो शाम जो अब तक है उधार

किसी फूल की खुशबू ने तुमको
फ़िर से यादो में ठकेला होगा
एक ही सवाल के जवाब ने तुमको
फ़िर से कई सवालो में घेरा होगा
उसने बनाया होगा फ़िर से लाचार
वो शाम जो अब तक है उधार

उन राहों पर जो फ़िर से चल पाता
सही गलत की जो जिरह कर पाता
लम्हों का हिसाब जो मैं रख पाता
अपना हर क़र्ज़ जो अदा कर पाता
तो दे जाता तुम्हे ये अनुपम उपहार
वो शाम जो अब तक है उधार

Tuesday, March 01, 2011

शादी की बात

एक दिन सुबह माता ने फ़ोन घुमाया
और लड़की देखने का फरमान सुनाया
हम तो अभी उठे है नहाने का प्लान बनाया है
और उसके बाद हमे अभी ऑफिस भी जाना है
जो उनको समझाया तो बोली वहा भी चले जाना
उससे मिलो पहले जिससे तुम्हे है मिलवाना
जमाना अब नया है मिलने का तरीका भी नया
घर में चाय नहीं किसी कॉफ़ी शॉप में ही बुला लिया
मेनू को देखकर वो उसमे जो थेसिस करने लगी
हमने उन्हें याद दिलाया ये पहली मुलाक़ात है अपनी
अभी तुम पचास रुपये ही क्वालीफाई कर पाई हो
जो महंगा है खाना तो खर्च करो जो अपने पैसे लाई हो
हर मुलाक़ात के बाद तुम्हारा बजेट बढ़ाएंगे
MBA किया है कभी तो दिमाग लगायेंगे

खाने का नाम सुनकर वो बोली
अभी बना लेती हु चाय और मैग्गी
कुछ दिन उसपर काम चलाना होगा
कभी मेरी तो कभी तुम्हारी माँ को गेस्ट बनाना होगा
होता काम बहुत है शुक्रवार तक
मूवी हम शनिवार को ही जायेंगे
तुम्हारे कार्ड में थोड़ी सी शापिंग
और वीकेंड खाना बाहर ही खायेंगे

गृहस्थ जीवन का ऐसा सुन्दर सपना
हम दोनो ने जो मिल जुल के देखा
एक कॉफ़ी में ही बात जम गयी
और पिज्जा खाने की रकम बच गयी
आमंत्रण के नाम पर
फेसबुक में एक इवेंट बना दिया
और शादी की जगह
फेसबुक का स्टेटस बदल दिया
अब हम जीवन जन्मान्तर के साथी है
पांच दिन ऑफिस के और दो दिन अपने खातिर है

रेत का फूल

यहाँ रेत का समुन्दर है
लहरों में हवा का शोर है
सूरज उगलता है आग
कोई ना रहा अब मेरे साथ

कभी थी कलियों यहाँ खेलती
फूलो से सजी थी ये नगरी
आती गयी सबकी बारी
अब यहाँ मैं अकेला पहरी
खुशबु का लगता था मेला
रंगों का था जादू फैला

था रंगों पे गुमान सबको
मौसम की लगी नज़र हमको
ऐसा मौत का मंजर देखने
रेत में अब हु मैं अकेला
सिख लिया रेत में जीना
पानी की हर बूँद को पीना
हर साथी को सूखते देखा
रंगों को दफ़न होते देखा

लड़ता रहा मौसमो के साथ
हर बूँद कुछ और देर बचाता रहा
जिस्म में बची है अब थोड़ी सी जान
खड़ा हु लेके बाकियों का अरमान
बारिश के आने की है आस
फैला के जाऊंगा बीज जो है मेरे पास

वो कचरा बीनता है

टूटी बोतलों के ढक्कन में
फटे कपड़ो के साबुत जेबों में
छोटे मोटे लोहे के टुकडो में
वो ज़िन्दगी तलाशता है
वो कचरा बीनता है

कुछ आकार बना लेता है
जंग लगे तारो से
बेकार चीजों के ठेर में भी
वो खिलौना तलाशता है
वो कचरा बीनता है

लोगो की गालियों को कर
अनसुना अपने में खोया रहता है
दिखने में कम उमर का शायद
वो अपनी उमर तलाशता है
वो कचरा बीनता है

फेके गए टूटे हुए सामानों में
कुछ साबुत टुकड़े खोज ही लेता है
लोगो के इस्तेमाल हुई खुशियों में
अपनी भी ख़ुशी तलाशता है
वो कचरा बीनता है