About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Wednesday, October 13, 2010

माटी

हल सुनाऊ दिन भर का 
बैठे थे सब साथ में साथी 
खेल रचे थे भाति भाति 
साँझ भई तो माटी के पुतले 
मिल गए फिरसे माटी में

सब लगते थे जैसे सच्चे
प्रेम के थे जो संबंध बांधे 
निभाई दुश्मनी भी कुछ से 
साँझ भई तो घर को लौटे 
रह गए रिश्ते माटी में

कुछ जोड़ा और कुछ घटाया
घर भी बनाये सपनो के
अपने नाम से नारे लगाये
मिटा दिए नाम किसी के 
साँझ भई तो कोई ना रहे
खो गए नाम माटी में

1 comment:

Sweta said...

very good.... nice message!