About Me

I write poems - I m going towards me, I write stories - किस्से ओमी भैय्या के, I write randomly - squander with me

Saturday, October 09, 2010

लफंगा सा एक परिंदा

मैं लफंगा सा एक परिंदा
भरने लगा हु उड़ाने ऐसी
छोटा लगने लगा आसमा
और खोजना पड़ा नया जहा

जी रहा हर ख्वाब ऐसे
कि ज़िन्दगी लगने लगी छोटी
हर लम्हे में ख़ुशी इतनी
कि वक़्त की रफ़्तार भी धीमी

दोस्ती दुश्मनी की किसको पड़ी
अब खुदसे होगई मोहब्बत इतनी
मेरा हवाओ से जुड़ गया रिश्ता
उड़ता रहा मैं लफंगा सा एक परिंदा

1 comment:

M VERMA said...

उड़ता रहा मैं लफंगा सा एक परिंदा
.....
बचा कर रखना अपने परों को
निगाह रखे हुए है आखेटक दरिंदा

सुन्दर रचना